संदेश

 

संख्या: 18

 

प्यारी साध संगत जी,

वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह |

इस अंक में हम “मानवता” पर चर्चा करेंगे।

मानवता  

मानवता का मतलब है humanity, इंसानियत, मनुष्यता, भलमानसता, मनुष्य होने की अवस्था या भाव, मनुष्य के आदर्श तथा स्वाभाविक गुणों, भावनाओं का प्रतीक या समूह । मानवता वह भाव है जब एक इंसान दूसरे को दर्द में देखकर दुखी हो जाता है, जब उसके मन में प्यार और दया जाग जाते हैं, जब वह दूसरों की मदद करना चाहता है, जब उसके मन में क्षमा और कृतज्ञता के भाव पैदा होते हैं, जब वह इंसाफ और सच्चाई का साथ देने के लिए कुछ भी कर गुज़र जाता है, जब वह दूसरों की खुशी और सुख में खुश हो जाता है।

मानवता मनुष्य होने की पहचान है। मानव में मानवता का स्पर्श रहना बहुत ज़रूरी है। मानवता मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। मानवता ही सभ्यता और संस्कृति की रीढ़ की हड्डी है। इसके बिना सभ्यता और संस्कृति का विकास सिर्फ कल्पना मात्र ही है। मानवता मनुष्य का वह गुण है जो उसे पेड़-पौधों, वनस्पति, पशु-पक्षियों और बाकी प्राणियों से अलग करता है। इस गुण के बिना मनुष्य मानव होते हुए भी मानव नहीं कहलाता। मानवता का भाव ही उसे मनुष्य जाति के अंदर संत और महात्मा का भी दर्जा दिलाता है इसका अभाव उसे राक्षस और वहशी भी बना देता है। यह एक ऐसा गुण हैं जो अपने अंदर गुणों का समूह समाये हुए है। दया, क्षमा, प्रेम, उदारता, सेवा, नैतिकता, शील, कृतज्ञता, आदर-सत्कार, अपनाना, परवाह करना, निष्पक्षता, इंसाफ, सहयोग, प्यार, सहिष्णुता (tolerance), भाईचारा, शुद्धता, सदाचार, परोपकार, सहनशीलता और संतोष आदि ऐसे गुण हैं जो मानवता में समाये हुए हैं और मानवता के प्रतीक हैं। एक कवि लिखता है :

"मानवता मन राखिये, करूणा दया अपार।

मानव सेवा साधना, मानवता का सार।।"

अपने आकार, शक्ल, खानदान या जाति के आधार पर ही कोई भी मानव नहीं हो जाता बल्कि मानव कहलाने के लिए उसके अंदर मानवता का होना बहुत ज़रूरी है।

मनु से उत्पन्न मानव कहलाते हैं। सृष्टि की सभी वस्तुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है जड़ और चेतन। इस सृष्टि में मानव ही ऐसा प्राणी है जिसमें चेतनता के साथ-साथ विवेक भी होता है। उसमें अन्य प्राणियों के मुकाबले सोचने और समझने की शक्ति बहुत ज्यादा होती है। वह भले और बुरे में फर्क कर सकता है। वह अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के सुख-दुख का भी ख्याल रख सकता है और दूसरों के लिए कुछ करने में समर्थ होता है। मानव में प्राकृतिक तौर से तीन प्रकार के गुण पाये जाते हैं सतो गुण, रजो गुण और तमो गुण। मैं पहले भी कई बार आपको बता चुका हूँ कि सतो गुण ही अपने अंदर वो सारे गुण समाये हुए है जो मानवता का आधार हैं। जो भी इंसान मानवता, इंसानियत का परिचय देता है, मानवता के गुणों को धारण किए हुए है उसमें सतो गुण की प्रधानता रहती है।

सृष्टि में मानवजाति ही है जिसने अपने सोचने समझने की शक्ति और विवेक से जिंदगी के हर पहलू में तरक्की की और आज इस धरती पर सबसे ज्यादा बुद्धिशाली और बलशाली है। मानव एक सामाजिक प्राणी है और शुरू से ही सभ्यता और संस्कृति अर्थात मानवीय गुणों को अपनाकर ही मानव आज के मुकाम पर पहुँचा है। सृष्टि की शुरूआत से आज तक और आने वाले वक्त में भी मानव जाति का मकसद है सुख, समृद्धि, तरक्की और शान्ति और यह सिर्फ और सिर्फ मानवता द्वारा ही संभव है। जब तक मानव एक दूसरे के साथ प्यार, भाईचारे, सद्भाव, नैतिकता, सहिष्णुता आदि के साथ नहीं रहेगा और दया, क्षमा, त्याग, कृतज्ञता और इंसाफ पंसदी आदि गुणों को नहीं अपनाएगा तो उसका इस मकसद को हासिल कर पाना मुमकिन नहीं है। दुनिया का हर धर्म अपने अनुयायियों (followers) और मानव को पहली सीख मानवता की ही देता है।

सिख धर्म मानवता का ही रूप है। सिख धर्म की नींव, सार और अस्तित्व मानवता ही है। गुरु नानकदेव जी महाराज दुनिया में मानवता के सबसे बड़े उदाहरणों में से एक हैं। उन्होंने सारी मानवजाति के लिए मानवता की परिभाषा को एक नया रूप प्रदान किया है। उन्होंने 20 रूपयों के साथ साधु महात्माओं को भोजन करवाकर लंगर की शुरूआत की और मानवता को एक नई दिशा प्रदान की। आज चलते हुए लंगर में हर जाति, हर धर्म, हर ओहदे का इंसान एक ही पंगत में सबके साथ बैठकर अपनी भूख मिटा सकता है। हर धर्म और जाति का व्यक्ति किसी भी गुरूद्वारे यानि गुरूपिता के घर जाकर अपने ज्ञान, मन और आत्मा की भूख को शांत कर सकता है। गुरू नानकदेव जी महाराज की तीन मुख्य शिक्षाओं में से एक " वँड छको" यानि कि "बाँट कर खाने की शिक्षा" ने मानवता के इतिहास को ही बदल कर रख दिया है। उन्होंने समाज से कुरीतियाँ खत्म करने और सबको बराबरी देने के लिए सिख धर्म की नींव रखी और पूरी मानव जाति को प्यार, भाईचारे, ईमानदारी, मेहनत, दया, दान और क्षमा की सीख दीं। गुरु अंगददेव जी महाराज ने लंगर की प्रथा को आगे बढ़ाकर, जाति-पाति और छुआ-छूत के भेद को मिटाया, कमज़ोर और सहमे हुए लोगों में जोश, हिम्मत और आत्मबल को बढ़ाने के लिए अखाड़े बनवाए और कसरतें आदि शुरू कीं, गुरूमुखी लिपि ईजाद की और गुरू नानकदेव जी की ज़िंदगी और उनकी सीखों को दुनिया तक पहुँचाने के लिए उनकी जन्मसाखी लिखवाई। गुरु अमरदास जी महाराज ने अकबर जैसे बादशाह को एक ही पंगत में सबके साथ लंगर करवाकर लंगर की परम्परा और निष्पक्षता को हमेशा-हमेशा के लिए स्थापित कर दिया। साँझी "बावली" बनवाकर जहाँ से हर कोई पानी ले सकता था छुआछूत की कुप्रथा मिटाने की मिसाल कायम की और सती प्रथा और पर्दा प्रथा की ज़बरदस्त खिलाफत की। गुरू रामदास जी महाराज ने अमृतसर शहर का निर्माण शुरू करवाया और अमृतसर सरोवर का भी निर्माण शुरू किया। उन्होंने शादियों के लिए "चार लाँवों" की रचना करके एक सीधी-सादी और सरल पद्धति समाज को देकर रूढ़िवादी परम्पराओं को दूर करने का कदम उठाया। गुरू अर्जुनदेव जी महाराज ने हरमंदिर साहिब की नींव मुस्लिम सूफी पीर साँई मियाँ मीर से रखवाकर चार दिशाओं में चार दरवाज़े रखवाकर यानि कि हर जाति, वर्ग, धर्म और पंथ के लिए हरमंदिर साहिब रूपी साँझे दरबार की स्थापना करके मानवता की एक अद्भुत मिसाल पेश कर दी। उन्होंने गुरू ग्रन्थ साहिब जी महाराज की रचना कर, शरण में आये जहाँगीर के बेटे शहज़ादा खुसरो को लंगर करवाकर और आशीर्वाद देकर, तरनतारन में रोगियों की सेवा कर और धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी देकर मानवता की अनगिनत मिसालें पेश कीं। गुरू हरगोबिंद जी महाराज द्वारा ग्वालियर के किले से 52 राजाओं को छुड़वाना, गुरू हरिराय जी महाराज द्वारा दारा शिकोह की बीमारी का इलाज, गुरु हरिकिशन जी महाराज द्वारा दिल्ली के निवासियों का हैज़े के रोग से निवारण, गुरू तेगबहादुर जी महाराज द्वारा पूरी मानवजाति की रक्षा के लिए अपना बलिदान और गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज द्वारा मानवता के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर देना और पूरे परिवार की आहुति दे देना मानवता के अद्वितीय उदाहरण हैं। गुरू ग्रन्थ साहिब जी महाराज जिनमें गुरू साहिबान के अलावा हर वर्ग के 30 हिन्दु-मुस्लिम संतों और भक्तों की वाणी शामिल है वह आज कलयुग के इस भयानक दौर में पूरी मानवजाति के लिए एक अद्भुत मार्गदर्शक हैं।

हमारे देश का इतिहास मानवता के उदाहरणों से भरा हुआ है। महर्षि दधिचि के द्वारा देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राणों का त्याग, जटायु जैसे एक पक्षी द्वारा एक स्त्री, माता सीता की रक्षा के लिए रावण जैसे महायोद्धा के साथ लड़ना और जान गंवाना और राजा शिवि का बाज़ से कबूतर को बचाना और उसके बदले बाज़ को अपना माँस दे देना मानवता के असाधारण उदाहरण हैं। आज के युग में डा० द्वारिकानाथ कोटनिस और नीरजा भनोट द्वारा मानवता के लिए दिए गए बलिदानों को भुला पाना मुमकिन नहीं है। भाई कन्हैया जी, महात्मा गाँधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, मदर टेरेसा, भगत पूरण सिंह, नेलसन मंडेला, ऐनी बेसेंट, बाबा आम्टे, ज्योतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले आदि के द्वारा मानवता के लिए किए गए काम सदियों-सदियों तक अमर रहेंगे। गीतकार रमेश पंत बहुत खूब लिखते हैं :

"जीना तो है उसी का जिसने यह राज़ जाना,

है काम आदमी का औरों के काम आना।"

अब सवाल यह उठता है कि आज के इस कलयुग में जब मानव धर्म और इंसाफ का साथ छोड़ अधर्म की तरफ बढ़ रहा है, आदर्शों और नैतिकता को त्यागकर भौतिकवादी (materialistic) और भोगी होता जा रहा है तो क्या आज के युग में मानवता जिंदा रह सकती है। इसमें कोई शक नहीं है कि हर युग में मानव ने लालच, ईर्ष्या, सत्ता या किसी और वजह से मानवता को ताक पर रखकर उसको शर्मसार किया है। दुनिया में हमेशा ही अच्छे और बुरे इंसान रहे हैं। लेकिन आज कलयुग अपने चरम पर है। आदर्श और संस्कार गुम होते जा रहे हैं और संस्कृति और मर्यादाओं का विनाश हो रहा है। लालच और निजी स्वार्थ मानव को खुदगर्ज़ बनाते जा रहे हैं। इंसानी रिश्ते दम तोड़ रहे हैं। जन्म देने वाले बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजा जा रहा है। ज़मीन जायदाद के लिए भाई भाई के खून का प्यासा हो गया है। दिन प्रतिदिन मारपीट, अपराध, लूटमार और दुष्कर्म बढ़ते जा रहे हैं। एक कवि बहुत खूबसूरत लिखता है कि "इंसान इंसान को डस रहा और साँप बैठकर रो रहा।" भ्रूण-हत्या, बाल-शोषण, यौन-शोषण, वेश्यावृत्ति, मानव अंगों की तस्करी, बाल मज़दूरी, बँधुआ मजदूरी आदि जघन्य अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। घूसखोरी, भ्रष्टाचार, बेईमानी और नशे की लत आदि रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। ईमानदारी, भाईचारा, कृतज्ञता और इंसाफ पसंदी आज दम तोड़ रहे हैं। धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता (communalism) और असहिष्णुता (intolerance) आदि भयानक रूप ले रहे हैं। मानव अधिकारों का हनन (assassination) बढ़ता जा रहा है। कवि लिखता है "मरते थे इंसान कभी पर, अब मर रही है इंसानियत।" मानव कुदरत के प्रति असंवेदनशील (insensitive) होता जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, पेड़-पौधों का नाश, लापरवाही से लगी जंगलों की आग, पानी के भंडारों का नाश, पानी और हवा का प्रदूषण आदि मानव के लालच और निजी स्वार्थों का ही नतीजा हैं। जानवरों के प्रति क्रूरता और बाकी विकल्पों (alternatives) के होते हुए भी उन्हें अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल करना मानव की प्रवृति बन चुका है। भूखों को खाना न मिलना, तड़पते हुए लोगों का सड़क पर दम तोड़ देना, सर्दी, गर्मी और बरसात में असहायों का खुले में पड़ा रहना, गरीबी की वजह से मासूम बच्चों की पढ़ाई का रुक जाना और उनका काम और मज़दूरी करना, कमज़ोर की मज़दूरी और हक का मारे जाना यह सब आज के पढ़े-लिखे, शिक्षित और सभ्य समाजों का हिस्सा बन चुके हैं। कौम और मज़हब के नाम पर दंगे-फसाद और आतंकवाद मानवता का दम घोंट रहे हैं।

सुख और दुख, अच्छाई और बुराई दिन और रात और मानवता और दानवता हमेशा से ही एक दूसरे के साथ रहते हैं। इस दुनिया में अच्छे और बुरे लोगों का संतुलन रहा है। लेकिन आज के वक्त में मानव पैसे कमाने की चाह, स्वार्थ, लालच, ईर्ष्या, होड़ और झूठी शोहरत की लालसा में, साम्प्रदायिकता के दलदल में और कौमों की आपसी नफरत में इतना फंसता जा रहा है कि वह पूरी तरह से भूल रहा है कि सभी मानव एक ही विधाता की औलाद हैं।

"अवलि अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे।

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे।।"

इस घोर कलयुग की अंधेरी रात में उसे गुरू महाराज जी का यह फरमान भी याद नहीं है।

मुझे लगता है कि मानव नैतिकता (morals) और आदर्शों की कमी और अनदेखी की वजह से अपना विवेक यानि कि अच्छे और बुरे में फर्क करने की शक्ति खोता जा रहा है। आज सख़्त ज़रूरत है ऐसी शिक्षा की जो मानव को नैतिकता, मानव-मूल्यों और आदर्शों का ज्ञान दे, उसे सद्व्यवहार और सद्भावना की शिक्षा दे, उसे संस्कारी, सदाचारी और विवेकशील बना दे। ज़रूरत है कि दुनिया के हर स्कूल में बच्चों को शुरू से ही नैतिकता और संस्कारों का ज्ञान दिया जाए। हर माता पिता का फर्ज़ है कि घर में ही बच्चों को अच्छे संस्कार और अच्छी आदतें दें। हर धर्म के नुमाइंदों और प्रचारकों का फर्ज बनता है कि वो सभी धर्मों की इज्ज़त करें और अपने अनुयायियों को भी धार्मिक सहिष्णुता का ज्ञान दें। दुनिया के हर देश, हर प्रांत की सरकार का फर्ज बनता है वह अपने देश और सभी क्षेत्रों में हर धर्म, हर कौम और हर भाषा की रक्षा करें और धर्म निरपेक्षता बनाए रखें और मानव अधिकारों की रक्षा करें। हम सब को, हर मानव को चाहिए कि अपनी "मैं", अहम को काबू में रखे और इसे खत्म करने की कोशिश करें, लालच, ईर्ष्या, नकल, होड़ और वासनाओं पर लगाम रखे। गुस्सा और नफरत मानव से गलत काम करवा देते हैं, उसे इनकी जगह अपने अंदर प्यार, दया, क्षमा, सहनशीलता और भाईचारे के भाव को बढ़ाना चाहिए। बाणी फरमाती है :

"फरीदा बुरे दा भला करि गुसा मनि न हढाइ।"

मानवता की बहाली के लिए अंधविश्वास, गलतफहमियों और रूढ़ियों का अंत करना ज़रूरी है और सबसे ज़्यादा ज़रूरी है मानव का अपनी ज़रूरतों को कम करना और अपनी अनुचित इच्छाओं का दमन करना ।

प्यारी साध संगत जी, ईश्वर ने हम सभी को पाँच तत्वों से बनाया है और हम सब में परमात्मा का ही अंश है। 84 लाख योनियों को भुगतने के बाद यह मानव की देह मिलती है और 84 लाख योनियों में मानव ही अपने दिमाग और विवेक की वजह से सर्वश्रेष्ठ जीव है और विवेक ही मानवता का संरक्षक (custodian, protector) है। याद रखें कि ईश्वर के पास मानव के हर काम का पूरा लेखा-जोखा है और मानव को एक दिन ईश्वर को अपने हर काम का पूरा हिसाब देना पड़ता है और उस वक्त उसकी मदद सिर्फ उसके किए हुए अच्छे और नेक काम ही करते हैं। आपका किया हुआ हर नेक काम गुरू और ईश्वर को दर परवान है। भाई कन्हैया जी ने लड़ाई के मैदान में अपने सिपाहियों के साथ-साथ जब दुश्मन के घायल सिपाहियों को भी पानी पिलाया तो गुरू गोबिंद सिंघ जी महाराज ने खुश होकर उनको पानी के सेवा के साथ घायलों को लगाने के लिए मलहम (balm) भी दी और आज न सिर्फ उनका नाम अमर हो गया है बल्कि सही मायनों में वही आधुनिक Red Cross के जन्मदाता भी हैं। बाणी फरमाती है :

"ना को बैरी नही बिगाना सगल संगि हम कउ बनि आई।"

मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ कि हमारा गुरघर और गुरसंगत अपनी यथाशक्ति और उपलब्ध संसाधनों (resources) के मुताबिक समाज और ज़रूरतमंदों की जितनी भी सेवा और परोपकार कर सकते हैं ज़रूर करें। बाणी फरमाती है :

"मिथिआ तन नही परउपकारा।।"

अनाथालयों, वृद्धाश्रमों और कुष्ठ रोगियों के लिए लंगर; रक्तदान; कपड़ों और घरेलू सामान का दान; ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के लिए stationary; गली मौहल्लों में सफाई; जहाँ पर भी मुमकिन हो पेड़-पौधों का लगाना; Health / Medical checkup camps; कुरीतियों के खिलाफ और कुदरत को बचाने के लिए जागरूकता फैलाना आदि मानवता के कई काम हम शुरू कर चुके हैं। मेरी आप सबसे गुज़ारिश है कि नेकी के कामों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें। आप सब नाम जपें किरत करें और वँड छकें और जीवन शैली के मुताबिक अपनी जिंदगी व्यतीत करें और "नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत दा भला" महावाक के अनुसार सबके भले के लिए काम करें और अरदास करें।

"सतु संतोखु दइआ कमावै एह करणी सार।"

 

वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।
गुरसंगत का दास
संतरेन डाॅ० हरभजन शाह सिंघ, गद्दी नशीन