महाराज श्री की जीवनी
जनम मरण दुहहू महि नाही जन परउपकारी आए।
जीअ दानु दे भगती लाइनि हरि सिउ लैनि मिलाए।।
आज के इस कोलाहल, दुःख, तकलीफों और चिंताओं से युक्त वातावरण में हर व्यक्ति अपने कर्तव्यों व सही जीवन शैली से अनजान केवल झूठे सुख और दुनियावी खुशियों के पीछे दौड़ रहा है। ऐसे समय में परमपिता परमेश्वर अपनी कुछ प्यारी, दिव्य एवं प्रबुद्ध आत्माओं को इस दुनिया में मनुष्य को ईश्वर से जोड़ने, सही मार्ग दिखाने एवं संतुलित रूप से मनुष्य योनि को निभाने के उद्देश्य से भेजते हैं। परम पूज्य संतरेन डाॅ. हरभजन शाह सिंघ जी, गद्दी नशीन, मानव जाति के लिए इसी तरह का एक दिव्य उपहार हैं।
 

संतरेन डाॅ. हरभजन शाह सिंघ जी उस ‘शाह’ परिवार के वंशज हैं, जिनकी सेवा व समर्पण की भावना से प्रसन्न होकर दीन दुनिया के मालिक, चेोथे पातशाह धन श्री गुरू रामदास जी महाराज जी ने मेहर बरसाते हुए उन्हें ‘शाह’ की उपाधि से नवाज़ा और सेवा व सिमरन का अथाह सागर सौंपते हुए सम्पूर्ण मानव जाति को ईश्वर से जोड़ने की सेवा बख़्शी।

 

महाराज श्री के दादा जी संत शिरोमणि श्री 108 श्री वासदेव शाह सिंघ जी महाराज उच्च कोटि के संत व विद्वान थे और उन्होंने सन् 1947 के देश के बंटवारे के बाद सति सांवल शाह सिंघ जी की गद्दी जो कि पाकिस्तान में डेरा इस्माईल खाँ में थी वह अलवर शहर, राजस्थान में स्थापित की।

 

महाराज श्री का जन्म 25 फरवरी सन् 1946 को अमृतसर में हुआ। महाराज श्री के पिता संतरेन बाबा रघबीर शाह सिंघ जी महाराज एक महान संत व प्रगतिशील मार्गदर्शक थे। उन्होंने वकालत के साथ संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। महाराज श्री की माताश्री मल्लिका निरमान शाह जी एक प्रधान अध्यापिका व उच्च विचारों से परिपूर्ण एक समाज सेविका भी थीं। महाराज श्री के माता-पिता का जीवन सेवा-सिमरन व मानव जाति के सुधार, उत्थान और ईश्वरीय कार्यों को समर्पित था। ऐसे सुसंस्कारों से महकते हुए वातावरण में महाराज श्री का पालन-पोषण बहुत ही सादगी से हुआ। महाराज श्री का व्यक्तित्व शुरू से ही बहुत शांत, सरल एवं धार्मिक प्रवृत्ति का है । महाराज श्री ने प्रांरभिक एवं स्कूली शिक्षा देहरादून से प्राप्त की। बचपन से ही महाराज श्री का रूझान संगीत, कला व प्रकृति में था एवं दसवीं कक्षा तक आते-आते महाराज श्री ने संगीत में भी महारथ हासिल कर ली। इसके साथ-साथ शुरू से ही महाराज श्री एक बहुत ही मेधावी छात्र रहे। महाराज श्री ने बहुत ही कम उम्र में मेडिकल काॅलेज की प्रवेश परीक्षा अव्वल दर्जे से उत्तीर्ण की। चूंकि महाराज श्री की उम्र कम थी, इसलिए महाराज श्री को काॅलेज में एडमिशन के लिए एक साल इंतज़ार करना पड़ा। तत्पश्चात् महाराज श्री ने अमृतसर मेडिकल काॅलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्राप्त की व कुछ समय के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में कार्यरत रहे।

 

सन् 1970 में महाराज श्री का विवाह शबनम शाह जी के साथ हुआ। माता शबनम शाह जी मैनचेस्टर (इंग्लैंड) में बहुत सी सामाजिक कार्यों से जुड़ी संस्थाओं के साथ कार्यरत रहीं। मुख्यतः उन्होंने गवर्नमेंट आथोरिटीज़ के साथ मिलकर Immigrants और Deprived Communities के लिए as a Counselor बहुत काम किया।

 

तत्पश्चात् महाराज श्री Medical Profession एवं Career को बढ़ाने के लिए मैनचेस्टर (इंग्लैंड) चले गए। वहाँ पर महाराज श्री 40 साल तक Medical Profession में कार्यरत रहे। हालांकि महाराज श्री का तन व व्यवसाय इंग्लैंड में था पर दिल हिन्दुस्तान में ही था। महाराज श्री अक्सर हिन्दुस्तान आते रहे व अपने इतिहास, संगत और संस्कारों से हमेशा जुड़े रहे। जनवरी 2009 में महाराज श्री हिन्दुस्तान वापस आ गए एवं अपने पिता संतरेन बाबा रघबीर शाह सिंघ जी महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद महाराज श्री वैसाखी के शुभ दिन 13 अप्रैल 2009 को गद्दी नशीन हुए। वर्तमान में महाराज श्री का निवास स्थान देहरादून (उत्तराखंड) शहर में है।

 

महाराज श्री के सुपुत्र डाॅ. यादवेन्द्र शाह सिंघ जी मैनचेस्टर में एक सीनियर डाॅक्टर हैं एवं महाराज श्री की एक पुत्री भी है।

महाराज श्री की जीवन शैली सादगी से परिपूर्ण एवं नियमित है व पूरी तरह से मानव जाति व संगत को समर्पित है। चेोबीसों घंटे धन-धन श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी महाराज का नमन करते हुए महाराज श्री अपना अधिक से अधिक समय संगत के साथ एवं ईश्वरीय कार्यों में व्यतीत करते हैं। उच्च विचार एवं सेवा और सिमरन से परिपूर्ण संयमित और नियमित जीवन महाराज श्री का मानव जाति एवं संगत को पहला उपदेश है।

 

महाराज श्री के अनुसार मनुष्य को सबसे पहले एक अच्छा, पढ़ा लिखा इंसान बनना चाहिए व सेवा और सिमरन करते हुए धन-धन श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी महाराज के दिखाये हुए मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल करना चाहिए। एक-दूसरे के प्रति प्यार, सदभावना, सहिष्णुता एवं समर्पण भाव रखना, मीठा बोलना और ईमानदारी से अपना जीवन-निर्वाह करना महाराज श्री की संगत को दी गई सीखों में से एक है। संगत का गुरमुखी में निपुण होना एवं नितनेम करना अनिवार्य है एवं महाराज श्री के अनुसार केवल सेवा एवं सिमरन से ही व्यक्ति अपना मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास कर सकता है। हर समुदाय एवं धर्म का आदर करना एवं सर्वशक्तिमान धन-धन श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में अटूट विश्वास एवं समर्पण की भावना रखना महाराज श्री का मानव जाति एवं संगत को ज्ञानोपदेश है। आत्मिक शुद्धि और मानव मूल्यों का जागरण महाराज श्री का परम उद्देश्य है।