ज्ञान के मोती 3

जो इंसान अपना तन मन गुरु को सौंप देता है व अहंकार त्याग देता है वो ही सच्चा शिष्य और सेवादार है।
जितना ज़रुरी है गुरु की आज्ञा को मानना उतना ही ज़रुरी है निम्रता से उस आज्ञा का पालन करना।
गुरु के वचनों पर शंका करने वाले को कभी भी गुरु की बख्शीश नहीं मिल सकती।
रुका हुआ पानी दुर्गन्ध देता है, चलते रहो।
बिना शर्त के, संपूर्ण आत्मसमर्पण ही सच्ची सेवा है।