ज्ञान के मोती 4

ईश्वर से ज़बरदस्ती कुछ भी ना मांगो। रिश्ते, पैसा और यश नाशवान है । मांगना है तो सिर्फ सेवा, सिमरन और सबका भला मांगो।
जो इंसान, जो जीवात्मा सिर्फ एक प्रीतम, एक गुरु, एक दर की बनकर रहती है वो सुहागन कहलाती है। उसकी कामयाबी व उद्धार निश्चित है। जो कई स्थानों पर जाते हैं, कई गुरु और स्नेही रखते हैं, वो दुहागन कहलाते हैं और उनका पतन निश्चित है। मनुखा जीवन सफल करने के लिए एक के ही बनकर रहो, सुहागन बनो।
माता पिता जैसे भी हों वो बच्चों के हितेषी होते हैं और हमेशा अपनी औलाद का भला चाहते हैं। अपने माता पिता की सेवा और इज़्ज़त करो।
इंसान को सबसे पहले अपने माता पिता की सेवा करनी चाहिए और फिर गुरु की। गुरु कभी भी उस इंसान की सेवा को स्वीकार नहीं करता जिसने अपने माता पिता की सेवा ना की हो और उनका तिरस्कार किया हो।
जन्म और मृत्यु इंसान के हाथ में नहीं हैं और उन पर उसका कोई बस नहीं चलता है। लेकिन जन्म से मृत्यु तक की यात्रा उसके अपने हाथों में है। वह अच्छे कर्म करके, दैविक गुण और गुरमुखी जीवन अपनाकर अपना जीवन सफल कर सकता है।