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संख्या: 15
प्यारी साध संगत जी,
वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह |
इस अंक में चर्चा का विषय है “आचरण”।
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सचहु औरे सभु को उपरि सचु आचारु।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
आचरण यानि कि व्यवहार, रवैया, तौर-तरीका, बरताव : conduct, behaviour, deportment, demeanour. गुरमुखी में इसे अचार कहा जाता है। इंसान जब किसी से मिलता है तो सबसे पहले दूसरे के ऊपर उसके आचरण, व्यवहार का असर पड़ता है। इंसान की शख्सियत (व्यक्तित्व) का पहला परिचय (introduction) उसके आचरण से मिलता है। इसलिए कहा जाता है कि आचरण इंसान की शख्सियत का विज्ञापन (advertisement) होता है। काफी हद तक एक अच्छे, बुरे या आम (सामान्य) इंसान का परिचय उसका आचरण दे देता है और पहली मुलाकात का असर आखिर तक बना रहता है। आचरण किसी भी इंसान के स्वभाव और रूहानी हालत (आत्मिक स्थिति) का आइना होता है। आचरण इंसान की ज़िंदगी की खाद है जिसके बिना उसकी शख्सियत कभी भी फल-फूल नहीं सकती। यह इंसान की आत्मा और मन रूपी ज़मीन को इतना उपजाऊ बना देता है कि वहाँ पर सिर्फ सदगुणों और अच्छे संस्कारों रूपी बगिया और उपवन ही फलते-फूलते हैं और विकार रूपी जंगली, कटीली और ज़हरीली खरपतवार (weeds) और झाड़ियों के लिए कोई जगह नहीं बचती। यह वह गहना है जिसे पहनकर एक कंगाल आदमी बड़े-बड़े कुलीन लोगों के दिल पर राज कर सकता है। यह वह कपड़ा है जिसे पहन कर इंसान की कमियाँ छुप जाती हैं। अच्छा आचरण सुन्दरता की कमी को ढक सकता है लेकिन सुन्दरता आचरण की कमी को कभी भी नहीं ढक सकती।
अच्छे आचरण और व्यवहार को सदाचार, सदाचरण और सदव्यवहार कहा जाता है और अच्छे आचरण वाला इंसान सदाचारी कहलाता है। गुरू महाराज जी फरमाते हैं :
चज अचार वीचार विचि पंचा अंदरि पति परवाणै।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
सदाचारी इंसान अपने अच्छे आचरण से सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि अपने माता-पिता, खानदान, जाति समाज और देश का नाम भी ऊँचा कर देता है। श्री रामचन्द्र जैसे आदर्श सदाचारी के कारण आज भी अयोध्या, अयोध्यावासी और रामराज्य अमर हैं। श्री कृष्ण के कारण उनके माता-पिता, गोकुल, वृन्दावन, मथुरा अमर हो गये और वंश को प्रसिद्धि मिली। गुरू नानकदेव जी जैसे सदाचारी पुत्र और शख्सियत की वजह से पिता मेहता कालू, माता तृप्ता, बहन बेबे नानकी, गाँव तलवंडी (ननकाना साहिब) और राय बुलार भी धन्य हो गये, और तो और सज्जन ठग, कौड़ा राक्षस, मलिक भागो, भूमिया चोर, वली कंधारी जैसे अनगिनत पापी जिनका गुरू महाराज जी ने उद्धार किया आज भी 500 सालों के बाद दुनिया उनका नाम गुरू महाराज जी की वजह से जानती और लेती है यह है अच्छे आचरण का प्रताप। अच्छे आचरण की वजह से हनुमान जी वानर होते हुए भी देवताओं से ऊपर उठ गये। वहीं अच्छे आचरण की कमी की वजह से अनगिनत शख्सियतों और उनके वंशों का नाश हो गया। राजा दक्ष ब्रह्मा जी के पुत्र होने के बावजूद भी अपने आचरण की वजह से अपनी बेटी सती की मौत और भगवान शिव के कोप और अपने नाश का कारण बना। बाली जैसा महान योद्धा जो कभी किसी से हारा नहीं था अपने आचरण की वजह से भगवान राम के हाथों मारा गया। महाज्ञानी और महाबली रावण अपने दुराचार की वजह से मारा गया और तकरीबन पूरे वंश के नाश का कारण बना। दुराचारी दुर्योधन अपने समूचे कौरव वंश, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण आदि के विनाश का कारण बना। हिटलर, गद्दाफी और सद्दाम हुसैन जैसे दुराचारी नेताओं और तानाशाहों की वजह से लाखों बेगुनाहों की जान गयी, अमन-चैन, खुशहाली और धन-दौलत का नाश हुआ और आज भी करोड़ों लोग उनकी ज्यादतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। अपने दुराचारी आचरण की वजह से देवताओं का राजा इन्द्र बहुत बार शर्मिन्दा और बेइज्ज़त हुआ और हमेशा सहमा और असुरक्षित (insecure) रहता है ।
मनुस्मृति में मनु कहते हैं कि आचार यानि कि आचरण ही सबसे बड़ा धर्म है और सभी तपों की जड़ है। जैसे बरगद, पीपल, आम, इमली, चीड़ आदि पेड़ एक बीज से पौधे के रूप में उगते हैं और वक्त के साथ विशाल पेड़ बनकर अनगिनत इंसानों, जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों को अपने फल, फूल, पत्तों, छाल, लकड़ी, छाया और शरण देकर सबका भला करते हैं वैसे ही इंसान में अच्छे आचरण का बोया गया बीज वक्त के साथ सदगुणों से लहलहा उठता है और इंसान को महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर, भगत कबीर और बाबा बुढ्ढा जी बना देता है जो लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगियों को बदल देते हैं। अपने अच्छे आचरण की वजह से प्रहलाद जैसा छोटा सा बालक हिरण्याक्ष जैसे दुराचारी का बेटा होते हुए भी अमर हो गया। रावण जैसे दुराचारी का भाई होने के बावजूद भी विभीषण अपने सदाचार की वजह से भगवान राम के प्यारे बने और जगत से पार हो गये। ज़िंदगी भर दुर्योधन और तमाम अन्य दुराचारियों के बीच रहते हुए भी अपने सदाचार की वजह से विदुर जैसे दासीपुत्र सभी के प्यारे और इज़्ज़तदार बने। अपने आदर्श व्यवहार की वजह से कौटिल्य यानि कि चाणक्य ने भारतवर्ष का इतिहास ही बदल कर रख दिया। अपने अच्छे आचरण की वजह से गुरू रामदास जी महाराज ने श्री चंदजी का दिल जीत लिया। पृथ्वीचंद और रामराय जी का आचरण ही उनके गुरगद्दी से वंचित (न मिलना) रहने का कारण बना। गुरू नानकदेव जी महाराज से लेकर गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज तक हमारे सभी गुरु साहिबानों का महान आचरण ही आज दुनिया के सबसे नये धर्मों में से एक सिख धर्म की नींव है जो आज भी लगातार सिख धर्म की बढ़ती हुई इमारत को मजबूती प्रदान किए जा रही है। अच्छे आचरण की वजह से रविन्द्रनाथ टैगोर, लाल बहादुर शास्त्री, भगत पूर्ण सिंह जी और मदर टेरेसा जैसी शख्सियत आज भी करोड़ों दिलों पर राज करती हैं।
मार्कस आरिलियस बहुत खूब लिखता है कि "इस जिरह में वक्त बरबाद मत करो कि एक अच्छा इंसान कैसा होना चाहिए, बल्कि बनके दिखाओ।" सवाल उठता है कि अच्छा आचरण है क्या। अच्छे आचरण का मतलब है सही सोच, सही वाणी और सही काम और क्रिया। Good conduct is virtuous deed in harmony with divine law यानि कि सदाचार इंसान के सदगुणों का ईश्वरीय सोच और कानून के साथ चलना है। ईश्वर की रज़ा में रहना और गुरू महाराज जी के भाणे को सर माथे पर लगाकर सहज ही मंजूर कर लेना ही सदाचार है। बाणी फरमाती है :
इही अचार इही बिउहारा आगिआ मानि भगति होइ तुम्हारी।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
कहते हैं कि अच्छे आचरण, सदाचार की चार चाबियाँ (keys) होती हैं : शुद्धता (purity), श्रद्धा (devotion), निमरता (humility) और उदारता, भलाई (charity).
शुद्धता : आत्मा की सहज अवस्था है। इंसान गुस्से, तैश और बदले की भावना को त्याग कर, शरीर को साफ-सुथरा और तन्दुरूस्त रखकर शादी तक ब्रह्मचर्य का पालन कर, अच्छी संगत कर, नियम और संयम से भरी जिंदगी जीकर शुद्धता हासिल कर सकता है।
श्रद्धा : ईश्वर और गुरु के प्रति प्यार और समर्पण है, अपने परिवार और प्रियजनों के लिए निष्ठा और अपनापन है। श्रद्धा पैदा होती है वफादार और भरोसेमंद बनकर, ईश्वर और गुरू की पूजा-आराधना से और निष्काम सेवाभाव से।
निमरता : आती है स्वभाव में मिठास पैदा करके, वाणी को मधुर करके, विनम्र बनके, शालीनता से, दूसरों को इज्ज़त देकर, आडंबरों और दिखावों से बचकर, हर इंसान और वस्तु में ईश्वर और गुरू की मूरत देखकर, अपने अंदर सहनशीलता और धैर्य पैदा करके, दूसरों को माफ करके और दूसरों की कमियों और दोषों को अनदेखा करके।
उदारता, भलाई : निष्काम होकर दूसरों का ख्याल रखना और चिंता करना, बिना किसी फल की उम्मीद किए अपनी हैसियत के हिसाब से दूसरों की मदद करना। अपनी कमाई, धन-दौलत, ऐश्वर्य, आराम के साधन आदि व्यवहारिक होकर (practically), हैसियत के मुताबिक वक्त पड़ने पर दूसरों के साथ बांटना और दूसरों के सुख-दुख में शामिल होना। उदारता पैदा होती है भूखे को रोटी खिलाने से, किसी गरीब का तन ढकने से, किसी ज़रूरतमंद को पढ़ाने से, उसकी फीस भरने से और किसी बीमार को दवा दिलाने से, किसी टूटे और गिरे हुए को दिलासा देकर उसका विश्वास (confidence) और आत्मसम्मान जगाकर। बाणी फरमाती है :
चउदह विदिआ सोधिकै परउपकारु अचारु सुखाणा।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
हम कलयुगी जीवों के लिए अच्छे आचरण का मतलब है : शिष्टता : प्यार और अपनापन; शालीनता : सम्मानपूर्वक व्यवहार; सच बोलना, सच्चाई का साथ देना; गुस्सा न करना, तैश में न आना; चोरी न करना, किरत करना और मेहनत से धन-दौलत कमाना, दूसरों का हक न मारना, दूसरों के धन और ऐश्वर्य पर नज़र न रखना; दूसरों को दुख और पीड़ा न पहुँचाना; मानवीय और नैतिक मूल्यों (human and moral values) की रक्षा करना; ईर्ष्या, होड़, नफरत और चुगली न करना; मधुर भाषी बनना; कबीर दास जी फरमाते हैं :
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।
अच्छा आचरण है संतोख, धैर्य और विवेक रखना, सहनशील बनना; ज़िम्मेदार, ईमानदार, वफादार और भरोसेमंद बनना; अच्छी संगत करना, इन्द्रियों को वश में रखना और मन, आँख, कान, नाक और वाणी को काबू रखना; वक्त, धन और शक्ति को अच्छे कामों में लगाना; अपने दिमाग, सोच, मन और शरीर को शुद्ध और तन्दुरूस्त रखना; झूठ, जुल्म और गलत बातों का विरोध करना; संयम और अनुशासन में रहना; सामाजिक और धार्मिक नियमों का पालन करना; कृतज्ञ, आभारी और धन्यवादी बनना; दूसरों की गलतियों और दोषों को अनदेखा करना; अक्खड़पन और घमन्ड का त्याग करना; जिंदगीभर सीखते रहना और सूझबूझ और व्यवहारिकता से काम लेना; औरों को आगे आने और ऊपर उठने का मौका देना; सभी हालातों में सम रहना और कर्तव्यों का सही पालन करना; निष्काम सेवा और सिमरन करना; निमरता और निमाणेपन को धारण करना; गुरू की हर आज्ञा का पालन करना; सबके सुख-दुख में शरीक होना, सबकी हमेशा यथासम्भव मदद करना और सरबत का भला चाहना। इनके अलावा आज के हालातों को देखते हुए पौधों और पेड़ों को बिना सही कारण के न काटना, हरियाली बढ़ाने की कोशिश करना, पर्यावरण (environment) की यथासम्भव हिफाज़त करना, हर किस्म के प्रदूषण (pollution) को रोकना, पानी की बचत करना, सफाई रखना और हर किस्म की hygiene को बनाए रखना आदि कुछ अच्छे सामाजिक आचरण हैं जो हम सबको अपनाने चाहिऐं।
अगर आप गौर करें तो पाएँगें कि हमारी गुरसंगत के लिए निर्धारित की गयी "जीवनशैली और आचरण नियम" में ऊपर दिए गये तकरीबन "सभी अच्छे आचरण" तय कर दिए गये हैं। वास्तव में हमारी जीवनशैली सदाचार का एक खजाना, भण्डार है। जिंदगी कैसे जीनी है, हमें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए सब कुछ हमारी जीवनशैली में तय कर दिया गया है, "सामान्य व्यवहार और खानपान; सामाजिक व्यवहार; नैतिक व्यवहार; धार्मिक और आत्मिक व्यवहार; गुरसंगत विवाह।" जीवनरूपी सबसे मुश्किल इम्तिहान के हर सवाल की कुन्जी (guide, reference book) है हमारी जीवनशैली। मेरे प्यारों, अगर आप हमारी जीवनशैली को अपनी जिंदगी में ईमानदारी से follow करने की, उस पर गम्भीरता से चलने की कोशिश करें और उसे अपनी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा बना लें तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपकी यह जिंदगी जंगलों में बिना कठोर तप किए, किसी भी तरह के कर्म-काँडों को किए बिना, तीर्थों पर भटके बिना सदगुणों से भरती चली जाएगी और आपको परमपिता परमात्मा और अपने गुरू महाराज जी के नज़दीक लेती जाएगी और आपको एक सच्चा और सुच्चा गुरमुख बना देगी।
गुरमुख और मनमुख में क्या फर्क है। गुरमुख वह इंसान है जिसका मुख हमेशा गुरू की तरफ होता है यानि कि गुरू वाला इंसान, वह इंसान जो गुरू को मानता है, जो गुरू के मुताबिक ज़िंदगी जीता है, गुरु के दिखाए रास्ते पर चलता है, गुरू की हर आज्ञा का पालन करता है, सेवा और सिमरन जिसकी ज़िंदगी का आधार है। इसके उलट जो गुरु की सत्ता या उस पर भरोसा नहीं करता, विकारों और अवगुणों से भरी जिंदगी बसर करता है, वह मनमुख है। अच्छा आचरण इंसान को गुरमुख और बुरा आचरण उसको मनमुख बना देता है। यह है अच्छे आचरण की ताकत और असर। बाणी फरमाती है :
गुरमुखि पाईऐ सबदि अचारि।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
सिख धर्म के मुताबिक पाँच सदगुण हैं जो सिक्खी का आधार हैं और इंसान को गुरमुख बना देते हैं। वो हैं सत, संतोख, दया, निमरता और प्यार। हकीकत में सिर्फ सिख धर्म के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए ये सदगुण ही अच्छे आचरण के सबसे मजबूत खम्बे (pillars) हैं। इससे बिल्कुल साफ हो जाता है कि अच्छा आचरण ही हर मज़हब की पहली ज़रूरत है, मर्यादा है और उसे आगे बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है। अच्छा आचरण ही हर मज़हब के अनुयायियों (followers) को दुनिया में पहचान देता है, इज़्ज़त और अहमियत देता है, उनकी साख बनाता है।
उपरि सचु अचारु चमोड़ी।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
अच्छे आचरण, सदाचार से इंसान को असीम फायदा होता है। इससे इंसान को हर तरह का सुख और मानसिक सुकून मिलता है और उसकी आध्यात्मिक तरक्की होती है। सदाचारी हर जगह अपनी अमिट छाप और असर छोड़ देता है और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है और वह प्रशंसा का पात्र बन जाता है। यह इंसानी ज़िंदगी को सार्थक कर देता है और इंसान को बहुत ऊँचाईयों पर ले जाता है। यह इंसान की जिंदगी को बहुत आसान, अमन-चैन से भरपूर और रुचिकर (interesting) बना देता है। अच्छा आचरण अच्छी दोस्ती और मजबूत रिश्तों को जन्म देता है। अच्छे आचरण से इंसान के कर्म शुभ हो जाते हैं और उसका ऐश्वर्य और सम्पन्नता बढ़ती है। अच्छे आचरण से इंसान का बहुमुखी (multifaceted) विकास होता है। यह सभ्यता, मानवता, संस्कृति और मजहब को बढ़ाता है और मानवीय और नैतिक मूल्यों का संरक्षक (guardian, protector) है। यह अच्छी संगत और आदर्शों को जन्म देता है। सदाचार से इंसान अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर काबू पाता है, उसके विकार नियंत्रण में रहते हैं और उसकी उम्र लम्बी होती है। सदाचार इंसान को आदर्शों और नियमों पर कायम रखता है और उसकी ज़िंदगी का मकसद (goal) प्राप्त करने में मदद करता है। यह इंसान को सात्विक और गुरमुख बना देता है।
आचरण परिवार, समाज, संस्कृति, आदर्शों, नैतिक मूल्यों, genetics और हालातों से प्रभावित होता है। इंसान अच्छे और बुरे का ज्ञान अपने से बड़ों, ज्ञानवान, गुरू, परिवार के सदस्यों, भरोसेमंद दोस्तों, नैतिक पुस्तकों, धर्म-ग्रन्थों, साधु-महात्माओं, महापुरूषों की जीवनियों और कई बार तो अपनी अंतरात्मा से भी ले सकता है। हर इंसान को अपने आचरण का रास्ता खुद ही तय करना पड़ता है। दूसरों से और पुस्तकों आदि से वह सिर्फ मार्गदर्शन (guidance) ही ले सकता है। लेकिन अपने हालातों, वक्त और स्थान आदि के मुताबिक हर इंसान को अपने आचरण की नैया खुद ही बनानी पड़ती है और खुद ही चलानी पड़ती है। एक बहुत ही खास बात और, आचरण की तरक्की ही इंसान की ज़िंदगी का मकसद है। ऐसा नहीं है कि एक बार इंसान में सद्गुण आ गए तो वो ज़िंदगी भर रहेंगे। इंसान को उनको बरकरार रखने के लिए और ऊपर उठाने के लिए ज़िंदगी भर लगातार अभ्यास करना पड़ता है। मेरे विचार में तो हर माँ-बाप को बच्चों को बचपन से ही अच्छा आचरण धारण करने की तालीम देनी शुरू कर देनी चाहिए। इसमें सबसे अहम भूमिका घर और पाठशाला (school), माता-पिता, भाई-बहन, घर के बड़ों और बुजुर्गों और पाठशाला में अध्यापकों की है। बचपन में दिए गए अच्छे संस्कार बच्चों की ज़िंदगी बना सकते हैं। यही कारण है कि मैंने नवयुवामंडल की शुरूआत की है। मेरी भरपूर कोशिश है कि हम अपने सभी बच्चों को सही आचरण की तालीम दें, उनकी अहमियत से उन्हें अच्छी तरह से वाकिफ करवा दें ताकि आने वाले वक्त में वो एक बेहतर इंसान बन सकें और कामयाब ज़िंदगी बसर करें। एक बहुत ही अहम बात, अगर हम अपने सभी छोटे बच्चों को जब वो बोलना शुरू ही करें तभी से उन्हें तीन बहुत ही खास और असरदार शब्द सिखा दें और उनका सही इस्तेमाल करने में उन्हें माहिर कर दें तो वो जिंदगीभर कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते जाएँगे। वो तीन शब्द हैं :
कृपया (please), शुक्रिया (thanks) और माफी (sorry). यकीन मानिए अगर हम सब भी इन तीन जादुई शब्दों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उतार लें, स्वभाव में शामिल कर लें और इनका सही वक्त, सही मौके पर सही इस्तेमाल करें तो यकीनन हमारे आचरण में भी positive फर्क आने लगेगा।
प्यारी साध संगत जी, आप सब अच्छे आचरण, सदाचार के असर और अहमियत से बखूबी वाकिफ हो गए होंगे। अच्छा आचरण ही हम सबको एक अच्छी और साफ-सुथरी शख्सियत देता है, ज़िंदगी को आसान, खूबसूरत और कामयाब कर देता है और धर्म, मज़हब को आगे बढ़ाने में एक अहम भूमिका अदा करता है। ईश्वर, धर्म और अच्छे कर्म inseparable, अलग न होने वाले हैं। ईश्वर की रज़ा में ज़िंदगी को बिताने के लिए, उसकी राह पर चलने के लिए और उसकी प्राप्ति के लिए इंसान में सद्गुणों का होना बहुत जरूरी है और वो आते हैं अच्छे आचरण से। जिस तरह पहाड़ चढ़ने के लिए लाठी या डन्डे का सहारा लेना पड़ता है वैसे ही ज़िंदगी के स्तर को बढ़ाने के लिए, ऊँचा उठाने के लिए सद्गुणों का सहारा लेना पड़ता है। जैसे जलते हुए जंगल में कोई भी इंसान, जीव-जन्तु या पशु-पक्षी नहीं रह सकते वैसे जिस इंसान में सद्गुण पैदा हो जाते हैं वहाँ पर विकारों और अवगुणों का रहना मुमकिन नहीं होता है। अक्सर यह कहा जाता है कि आप दूसरों से जैसे व्यवहार की उम्मीद करते हैं आपको भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। लेकिन मेरा यह मानना है कि दूसरे आपके साथ चाहे जैसा भी व्यवहार करें लेकिन उनके साथ आपका व्यवहार हमेशा ही अच्छा होना चाहिए, यह है असली सदाचार। अनुकूल (favourable) हालातों में तो हर कोई अच्छा आचरण करता है लेकिन जो प्रतिकूल (unfavourable) हालातों में भी अच्छा आचरण न छोड़े वो ही सच्चा सदाचारी होता है।
गुर मिलि चजु अचारु सिखु तुधु कदे न लगै दुखु।
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
इस अरदास के साथ कि गुरू महाराज जी आप सबको अच्छे आचरण और सद्गुणों की दात बख्शें और सेवा और सिमरन से आप सबकी जिंदगी को महका दें मैं विल्सन मिज़नेर के इस खूबसूरत कथन के साथ अपनी कलम को आराम देना चाहूँगा "ऊपर जाते वक्त, कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आपको जो लोग राह में मिलें उनसे अच्छा व्यवहार करें क्योंकि नीचे उतरते (गिरते) वक्त भी आपको वही लोग मिलेंगे।"
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वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह। गुरसंगत का दास संतरेन डाॅ० हरभजन शाह सिंघ, गद्दी नशीन |
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