चरित्र को रीढ़ की हड्डी भी कहा जाता है। अगर रीढ़ की हड्डी खराब या कमज़ोर हो जाए तो इंसान अपंग हो जाता है। ठीक वैसे ही चरित्र के बिना इंसान का व्यक्तित्व भी अपंग या खोखला हो जाता है। कहते हैं दुर्बल या कमज़ोर चरित्र का इंसान उस सरकंडे जैसा होता है जो हवा के हर झोंके से झुक जाता है। लेकिन इसके उलट मज़बूत चरित्र वाला इंसान एक मज़बूत चट्टान की तरह होता है जिसके चारों तरफ दुनिया की सारी खुशियाँ घूमती हैं। बुरा वक्त और मुसीबतें उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते, उसे मिले काँटे फूल बन जाते हैं, बेइज्जती इज़्ज़त बन जाती है, जेल की सलाखें उसके लिए मन्दिर और ज़हर का प्याला अमृत बन जाता है। जब श्री रामचन्द्र जी और रावण में लड़ाई हुई तो रावण क्यों हारा ? वो श्री रामचन्द्र जी से ज़्यादा ताकतवर था, महान पंडित और विद्वान, सोने की लंका जैसी बेइन्तहा धन-दौलत का मालिक, महाबलशाली राक्षसों की सेना के साथ था और अपनी ज़मीन, अपने घर पर ही लड़ा और फिर भी क्यों हार गया? क्योंकि श्री रामचन्द्र जी चरित्रवान थे और रावण नहीं था। संस्कृत के एक श्लोक के मुताबिक "विदेश में इंसान की पढ़ाई, विद्या उसकी दौलत है, मुश्किल वक्त में अक्ल, बुद्धि उसकी दौलत है, परलोक में धर्म उसकी दौलत है, लेकिन शील, यानि कि अच्छा और उतम चरित्र ही सर्वत्र, सब जगह उसकी दौलत है।"
आखिर यह चरित्र है क्या ? चरित्र का मतलब होता है चाल-चलन, सदाचार, आचरण, स्वभाव या गुण धर्म। अंग्रेज़ी में इसे character, conduct और moral भी कहते हैं। चरित्र शब्द के और भी कई मतलब हैं जैसे कि जीवनी या जीवन चरित्र; कहानी या नाटक आदि का पात्र; कार्यकलाप या जीवन में किए हुए कार्यकलापों का विवरण। लेकिन आज हम जिस चरित्र के बारे में विचार कर रहे हैं वह है चाल-चलन, सदाचार, आचरण। यहाँ चरित्र या आचरण का आशय, भाव है सदगुणों का भंडार। आमतौर पर अच्छे गुणों और आदतों के समूह को चरित्र में शामिल किया जाता है। चरित्र अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का होता है। जिस इंसान के व्यवहार में सच्चाई, प्यार, इंसानियत, करूणा, दया, त्याग और इंसाफ पसन्दगी जैसे गुण आ जाते हैं उसे चरित्रवान कहते हैं और उसके उलट जिस इंसान में गुण नहीं होते या कम या कमजोर होते हैं या जो अवगुणों से भरा हुआ हो उसे चरित्रहीन कहते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों (psychologists) के मुताबिक चरित्र इंसान के व्यक्तित्व (personality), नैतिकता (morality) और स्वभाव (temperament) का जोड़ है। डमविल के अनुसार "Character is the sum of all the tendencies which an individual possesses" कि “चरित्र उन सब प्रवृत्तियों या प्रकृतियों का योग है जो एक इंसान में होती हैं। "आम भाषा में इंसान की सोच, गतिविधियों, आदतों और उसके स्वभाव के मेल को चरित्र कहते हैं।
किसी को भी फर्श से अर्श तक और अर्श से फर्श तक पहुँचा देने की ताकत है चरित्र में। यह इंसान की सबसे अनमोल दौलत है। इस दौलत के सामने दुनिया की सारी मुसीबतें और ऐशो-आराम घुटने टेक देते हैं। गुरूनानकदेव जी महाराज के चरित्र के सामने बादशाहों से लेकर साहूकारों तक, राक्षसों से लेकर ठगों तक और फकीरों, मौलवियों से लेकर महाज्ञानी पंडितों और सिद्धों तक ने माथा टेक दिया। सुभाषचन्द्र बोस के चरित्र के सामने अनगिनत आदमियों-औरतों और युवाओं ने अपनी दौलत, जायदाद, खून यहाँ तक की अपनी जिंदगी भी उनको सौंप दी। मुट्ठीभर हड्डियों वाले महात्मा गाँधी के चरित्र के सामने दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्कों में से एक इंग्लैंड और उसकी सरकार ने हार मान ली। वल्लभ भाई पटेल के चरित्र की ताकत के सामने सभी राजे-रजवाड़े नतमस्तक हो गए। हमारा सिख धर्म चरित्र की एक से बढ़ कर एक नायाब मिसालों से भरा पड़ा है। आप किसी भी गुरूमहाराज जी की जिंदगी देख लें आपको उनके हर काम, हर क्रिया में अनमोल और मज़बूत चरित्र की मिसालें ही मिलेंगी। सिर्फ नौ साल की उम्र में ही गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज ने अपने पिता गुरू तेगबहादुर जी महाराज को धर्म और इंसानियत की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी देने को कहकर, अपने चरित्र की ऐसी मिसाल पेश की जिसका आज तक कोई सानी नहीं है। उनके बेमिसाल चरित्र की ताकत की ही वजह से हिन्दुस्तान को मुगलों की गुलामी से आज़ादी मिल सकी और सिख धर्म को उसका आज का आलौकिक स्वरूप और अमिट पहचान मिल सकी। देश के बँटवारे के बाद अपना सबकुछ खो देने के बावजूद अलवर में सति साँवल शाह जी महाराज की गद्दी की स्थापना, अलवर और रूड़की में गुरस्थानों की स्थापना और तितर-बितर, बिखरी हुई संगत को जोड़कर एकजुट करना सिर्फ और सिर्फ संत वासदेव शाह सिंघ जी महाराज के चरित्र की असीम ताकत का ही नतीजा है।
अच्छी प्रकृति, अच्छे विचार और सदगुणों से भरे इंसान को सदाचारी और सच्चरित्र कहा जाता है। जबकि गन्दी और बुरी सोच और दुर्गुणों से भरे इंसान को दुराचारी और दुश्चरित्र कहा जाता है। जिस इंसान के अंदर या उसके व्यवहार में प्रेम, दया, करूणा, त्याग, अहिंसा, इंसानियत, सच्चाई, ईमानदारी, सरलता, निरवैरता, सादगी, संयम, निष्ठा और लगनशीलता आदि जैसे गुण मौजूद हों वही चरित्रवान कहलाता है। अक्सर आप पाऐंगे कि अच्छे चरित्र वाले लोगों में आत्म-नियंत्रण (self control) होता है और वो कठोर हालातों में भी विचलित नहीं होते; वो विश्वसनीय (reliable) होते हैं, वो मेहनती होते हैं और कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ते उसे टालते नहीं हैं और हर काम पूरी निष्ठा (devotion) के साथ करते हैं; उनका अंतःकरण (conscience) बिल्कुल शुद्ध होता है, उनका मन, वचन और व्यवहार छलरहित होते हैं और उनकी कथनी और करनी एक जैसी होती है; उनमें उत्तरदायित्व (responsibility) की भावना भरी होती है; वो लज्जाशील, धीर और गंभीर स्वभाव वाले होते हैं, वो निर्लोभी (लालचहीन) और दूसरों का भला चाहने वाले और सबको बराबर समझने वाले होते हैं; हमेशा सच का साथ देने वाले और अपनी ताकत और सामर्थ्य (abilities, potential) दूसरों की भलाई में लगाते हैं; भारी से भारी मुसीबतों का सामना हिम्मत और सच्चाई से करते हैं और किसी भी हाल में अपने रास्ते से भटकते नहीं हैं। अच्छे चरित्र वाले इंसान अपने माँ-बाप, गुरूजनों, गुरू महाराज और ईश्वर के अनन्य भक्त होते हैं। चरित्रवान लोगों में आत्मबल (self-confidence) के साथ-साथ उच्चकोटि का धैर्य और विवेक (भले बुरे की समझ, judgement) निश्चित रूप से होता है। ज़रूरी नहीं है कि चरित्रवान इंसान को हमेशा ही कामयाबी मिलती है। बहुत बार वो अपने मकसद में या किसी काम में नाकामयाब रहते हैं, पर हर हालात में उन्हें इज़्ज़त मिलती है उनकी मिसालें पेश की जाती हैं। ईसा मसीह सूली चढ़ कर करोड़ों-अरबों दिलों के मालिक बन गए। शहीद भगत सिंह मौत को गले लगाकर आज भी करोड़ों हिन्दुस्तानियों के लिए प्रेरणादायक स्त्रोत (inspirational source) हैं। चरित्रवान इंसान जब तक जीवित रहता है वो संतुष्ट (contented) रहता है और सही रास्ते पर चलने की वजह से उसे कभी भी सच का साथ देने के लिए पछतावा नहीं होता। वो आखिर तक नज़रें और गर्दन उठाकर जीता है, अपने सभी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाता है। जबकि ऐसा इंसान जिसका चरित्र कमज़ोर हैं या जो चरित्रहीन है वो कोध, लालच, वासना, ईर्ष्या, संताप, निर्दयता, झूठ, छल-कपट आदि दुश्प्रवृत्तियों से ग्रस्त, भरा होता है। उनमें संयम और आत्मनियंत्रण या तो नहीं होता या बहुत कम होता है। उनकी जिंदगी आलस्य और भोग-विलास से लिप्त होती है और उनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है। उनमें विश्वसनीयता (reliability), कर्मठता, उत्तरदायित्व की भावना, मुसीबतों का सामना करने की हिम्मत, सहनशीलता और आत्मबल आदि गुणों की कमी होती है। झूठ का सहारा लेना और साथ देना, दूसरों को नीचा दिखाना, ईर्ष्या और होड़ करना, निन्दा और चुगली करना, ज़रा सी मुसीबत आते ही मैदान छोड़ कर भाग जाना, सबकुछ होते हुए भी दूसरों की मदद न करना, अपना बड़प्पन और शेखी झाड़ना, दूसरों के काम को अपना बताना और हक मारना आदि दुर्गुण चरित्रहीन इंसान की विशेषताऐं होती हैं। इंसान की महानता उसके चरित्र पर ही निर्भर करती है। कुर्सी और ओहदा किसी को भी महान नहीं बनाता। सत्ता से प्राप्त महत्ता (importance) सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही होती है और सत्ता से अलग होते ही खत्म हो जाती है। औरंगज़ेब जैसे क्रूर बादशाह की बादशाहत सिर्फ उसके सिंहासन पर बैठने तक ही सीमित थी लेकिन सर्वस्वदानी, त्याग, सच्चाई और हिम्मत के महासागर, धर्म और देश के रक्षक गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज की बादशाहत और सल्तनत आज तक न सिर्फ कायम है और पूजी जाती है बल्कि दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ रही है और युगों-युगों तक बढ़ती रहेगी और पूजनीय रहेगी। वक्त की ताकत देखिए कि आज उसी औरंगज़ेब की मजार पर दिया जलाने के लिए तेल तक नहीं है और गुरु तेगबहादर जी महाराज जिन्होंने धर्म और इंसानियत की रक्षा के लिए कुर्बानी दी उनके स्थान गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब, दिल्ली में घी के इतने भण्डार हैं जो आने वाले हजारों सालों तक भी खत्म नहीं होंगे। चरित्र से प्राप्त महत्ता शाश्वत (सदा रहने वाला, eternal) और चिरकालीन होती है और बड़े से बड़े वज्रघात भी उसका नाश नहीं कर सकते। चरित्रहीन इंसान के पास अगर दौलत है तो वो उसको भोग-विलास और कई गलत कामों में लगा देगा, अगर चरित्रहीन विद्वान है तो अपनी लयाकत, ज्ञान और दिमाग को षडयंत्र, छल-कपट, फरेब आदि में इस्तेमाल करेगा और अगर वो ताकतवर है तो दूसरों पर जुल्म करेगा जैसा कि मगध के राजा धनानन्द और मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने किया। लेकिन चरित्रवान इंसान अपनी दौलत, ज्ञान और ताकत का इस्तेमाल दूसरों की भलाई के लिए ही करते हैं जैसा कि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और हमारे सभी गुरु महाराज साहिबान ने किया। अगर इंसान गरीब है, ज़्यादा पढ़ा-लिखा या ज्ञानवान नहीं है और न ही उसके पास ताकत या कोई और सामर्थ्य है, पर वो चरित्र का धनी है तो जिंदगी में उसकी महत्ता और उपयोगिता (value, utility) में किसी भी तरह की कमी नहीं आती। यहाँ पर मैं अपने गुरूघर और गुरसंगत की मिसालें देना चाहूँगा। मुझे याद आ रही है स्वर्गीय भगवान दास गुलाटी जी (नूह), स्वर्गीय बालकराम (बहल) चाचाजी (दिल्ली) और स्वर्गीय नेभराज सपड़ा जी (रूड़की) की जिन्होंने बहुत ही साधारण इंसानों की तरह जिंदगी गुज़ारी लेकिन उनकी निष्ठा, ईमानदारी, गुरुभक्ति, निमरता, सादगी और निष्काम सेवा जैसे सदगुणों और उत्तम आचरण की वजह से हमारे गुरूघर में उन्हें ऐसे ऊँचे सेवादारों का दर्जा मिला कि उनके दुनिया से चले जाने के बाद उनकी कमी आज भी हम सब महसूस करते हैं। लेकिन अगर इंसान दौलतमंद, विद्वान, प्रतिभाशाली या ताकतवर होते हुए चरित्रवान नहीं है तो सबकुछ होते हुए भी वो दीन-हीन, मलीन है और उससे न तो अपना ही भला हो सकेगा और न ही समाज का। जबकि अच्छे चरित्र वाला इंसान समाज, जाति और देश की एक बहुत ही बड़ी संपत्ति (wealth, asset) है। महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है "प्रतिभा / योग्यता (ability, brilliance) से भी ऊँचा है चरित्र का स्थान।"
किसी ने बहुत सुंदर कहा है कि जब धन चला गया तो कुछ भी नहीं गया, जब सेहत चली गयी तो कुछ गया, लेकिन अगर चरित्र चला गया तो सबकुछ चला गया। चरित्र इंसान की जान है जिसके बिना वह सिर्फ चलते फिरते मुर्दे के समान है। चरित्र की कमी से ताकत, समृद्धि (prosperity) और विकास (growth) बर्बाद होने लगते हैं। कला, पैसा, योग्यता, पढ़ाई, अक्ल, ताकत आदि की इंसान की जिंदगी में बहुत अहमियत है लेकिन उनका पूरा फल और फायदा अच्छे चरित्र के साथ ही मिल सकता है। प्यारी साध संगत जी, जब चरित्र की हमारी जिंदगी में इतनी ज्यादा अहमियत है तो सवाल उठता है कि चरित्र का निर्माण, रचना कैसे होती है या इसे कैसे पैदा किया जाए। इंसान का चरित्र जन्मजात गुणों, विचारों, आदतों से ढाले गए व्यवहार को मिलाकर बनता है। लाल बहादुर शास्त्री जी की मिसाल हमारे सामने है। वो मीठा बोलने वाले, नरम, शांत और गम्भीर स्वभाव वाले एक बिल्कुल से आम दिखने वाले इंसान थे। लेकिन कड़ी मेहनत, सच्चाई, ईमानदारी, मज़बूत इच्छाशक्ति, निमरता और सादगी जैसे गुण उनके स्वभाव और जिंदगी में ढले हुए थे, नतीजा यह हुआ कि उन्हें एक ऐसा उज्जवल और प्रकाशमान चरित्र मिला जिससे पूरे देश को एक नयी रोशनी और नयी राह मिली। जन्म से सब एक जैसे नहीं होते, हर एक इंसान में जन्म से ही कुछ अच्छाईयाँ- बुराईयाँ होती हैं। जिनमें जन्मजात बुराईयों का प्रतिशत, हिस्सा ज़्यादा होता है, उनके लालन-पालन, संस्कार और पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है ताकि उनके व्यवहार को संयमित (controlled, restrained) किया जा सके। जो जन्म से ही अच्छे स्वभाव के होते हैं, जिनमें बुराईयों का प्रतिशत, हिस्सा कम होता है वो थोड़े से मार्गदर्शन, रास्ता दिखाने से ही सही रास्ते पर चल पड़ते हैं। चरित्र के निर्माण में इंसान की सोच और विचार बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि चरित्र को बदलने के लिए विचारों का बदलना भी बहुत जरूरी है। बहरहाल, कुछ विचारकों का मानना है कि बच्चे का चरित्र तीन साल की उम्र में बनना शुरू हो जाता है। बच्चों पर घर, पड़ोस, समाज और स्कूल के माहौल का बहुत असर पड़ता है। जो कुछ वो घटता देखते हैं, महसूस करते हैं, जिस माहौल का वो हिस्सा होते हैं उससे वह बहुत कुछ सीखते हैं और प्रभावित होते हैं। यहीं सीखें धीरे-धीरे उनकी सोच, विचारधारा (ideology), आदतें, स्वभाव और चरित्र बनने लगती हैं। बच्चों के चरित्र निर्माण में माँ-बाप और शिक्षकों (teachers) का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसके अलावा परिवार के बाकी सदस्य, भाई-बहिन, पड़ोसी और समाज के वह सदस्य जिनका बच्चों के साथ अक्सर मिलना होता है, दोस्त, स्कूल के साथियों और अन्य बच्चों का भी असर उनके चरित्र और स्वभाव पर पड़ता है। मुझे आजकल बहुत से माँ-बाप और अभिभावकों (guardians) की एक बात पर बहुत हैरानी और दुःख होता है कि वो अपने बच्चों के भविष्य निर्माण पर ही सारा ध्यान लगा रहे हैं। नर्सरी कक्षा से ही बच्चों के career (जीविका, पेशा, व्यवसाय) की planning (योजना) शुरू कर दी जाती है। कई बार तो बच्चों के पैदा होने से पहले ही माँ-बाप उनके भविष्य और career के बारे में फैसला कर लेते हैं। लेकिन बच्चों के चरित्र निर्माण की planning की तरफ शायद उनका ध्यान ही नहीं जाता। आज बच्चों के चरित्र निर्माण की शिक्षा-दीक्षा या तो सिकुड़ती, कम होती जा रही है या बिल्कुल ही नहीं होती। बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र में अंग्रेजी सिखाने, current affairs (ताज़ा घटनाचक्र) सिखाने, modern attiquettes (आधुनिक शिष्टाचार), अच्छी hobbies (रूचि, शौक) सिखाने की होड़ और दौड़ में माँ-बाप इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें अपने बच्चों को सदगुणों के बारे में बताने और अपनाने के लिए प्रेरित करने के लिए, गुरूघर के इतिहास और दादा-परदादा के जीवन और अपने कुटुम्ब के इतिहास, गुरु साहिबान की साखियों, महापुरूषों की जीवनियों आदि सुनाने, पढ़ाने और बताने के लिए न तो वक्त मिलता है और न ही ज़रूरत महसूस होती है। स्कूल में पहले ही दिन से हर शिक्षक चाहता है बच्चे ज़्यादा से ज़्यादा नम्बर लाऐं और स्कूल का नाम रोशन करें। Moral education (नैतिक शिक्षा) अब एक subject (विषय) से सिकुड़ कर सिर्फ कुछ chapters (अध्यायों) तक ही सीमित रह गयी है। इन सबके बावजूद भी अगर बच्चे और युवा कुछ सदगुण अपना लेते हैं और उनका चरित्र विकसित होने लगता है तो आजकल का अश्लील वातावरण, भयंकर तबाही मचाता हुआ Social media, Sattelite television, Internet और Mobile phones का अंधाधुंध इस्तेमाल उनके चारित्रिक निर्माण में अच्छी खासी बाधा, रुकावट पैदा कर रहे हैं। बच्चों को तो छोड़िए आजकल Social media, Sattelite television, Internet और Mobile phones का ज़बरदस्त चाल-चलन और इस्तेमाल जवानों, अधेड़ों, बूढ़ों, बुजुर्गों यानि कि हर उम्र के इंसान के चरित्र, नैतिक मूल्यों और आचरण पर अच्छा खासा नकारात्मक (negative) असर डाल रहे हैं। मेरे प्यारों, जागो और अपने विवेक से काम लो और इस घिनौनी सच्चाई का संयम, इच्छाशक्ति और हिम्मत से सामना करो। बच्चों को शुरू से ही नैतिक मूल्यों (moral values) और अच्छे गुणों से वाकिफ करवाओ, उन्हें अच्छी आदतें और अच्छा माहौल दो। जैसा कि मैं आप सबको बहुत बार बता चुका हूँ कि बच्चों को, अपने आप को, अपने परिवार को पड़ोस और समाज को और जहाँ तक मुमकिन हो सबको Social media, Sattelite television, Internet और Mobile phones के बेइन्तहा और गलत इस्तेमाल से होने वाले नुकसानों के बारे में आगाह करो और इनका जायज और सही इस्तेमाल करके इनका पूरा फायदा अपनी जिंदगी को बेहतर और आसान बनाने के लिए करो।
एक बात और, इंसान की संगति भी उसके चरित्र और आचरण पर बहुत असर डालती है। गुरबाणी फरमाती है :
"जिउ चंदन निकट वसै हिरडु बपुड़ा तिउ सतसंगति मिलि पतित परवाणु।।"
(श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी)
अर्थात जैसे चंदन के नज़दीक बेचारा अरिण्ड वसता है (और सुगंधित हो जाता है) वैसे ही साध - संगति में मिल के विकारी भी (पवित्र होकर के) कबूल हो जाता है।
"कबीर मारी मरउ कुसंग की केले निकटि जु बेरि।
उह झूलै उह चीरीऐ साकत संगु न हेरि।।"
(श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी)
अर्थात केले के नज़दीक बेरी लगी हो और वो जब हवा से झूलती है तो केला (बेरी के काँटों से) चीरा जाता है। वैसे ही (हे कबीर) बुरी सोहबत में बैठने से विकारों के असर से तेरी जीवात्मा आत्मिक मौत मर जाएगी।
इंसान को चरित्रवान बनाने के लिए शिक्षा से ज्यादा जरूरत संगति की है। संस्कृत में कहा गया है :
"संसर्गजाः दोषगुणा भवन्ति।"
मतलब कि दोष और गुण संसर्ग से ही पैदा होते हैं ।
याद रखिए एक साधारण सा कीड़ा भी फूलों की संगति करके ईश्वर, बड़े-बड़े देवताओं और महापुरूषों के मस्तक या चरणों तक पहुँच जाता है। अपने बच्चों और अपनी संगति का विशेष ध्यान रखें।
साध-संगत जी, मैं चरित्र की अहमियत के बारे में जो कुछ भी आप तक पहुँचाना चाहता था उम्मीद करता हूँ इस संदेश के द्वारा मेरा वो मकसद पूरा होगा। एक बहुत मशहूर कहावत है "अपने विचारों पर ध्यान दो, वे शब्द बन जाते हैं। अपने शब्दों पर ध्यान दो वो आदत बन जाती हैं। अपनी आदतों पर ध्यान दो, वो तुम्हारा चरित्र बनाती हैं। अपने चरित्र पर ध्यान दो, वह तुम्हारी नियति, भाग्य का निर्माण करता है। "चरित्र को बनाने में सालों-साल लग जाते हैं लेकिन चरित्र के पतन में बिल्कुल भी वक्त नहीं लगता। गयी हुई दौलत, इज़्ज़त और कामयाबी फिर से वापस आ जाते हैं लेकिन चरित्र पर लगा हुआ दाग कभी भी नहीं मिटता। पढ़ाई और योग्यता इंसान को कामयाबी की ऊँचाई तक पहुँचा सकते हैं लेकिन चरित्र ही इंसान को ऊँचाईयों पर बनाए रखता है। अपने चरित्र के बारे में हमेशा गंभीर रहें और आखरी दम तक इसको सँजो कर रखें। चरित्र का विकास ही हमारी जिंदगी का मकसद होना चाहिए।
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