विश्वास, भरोसा, यकीन इन्सान का वह गुण है जिसके बिना वह जिन्दगी के किसी भी पहलू में कामयाबी हासिल नहीं कर सकता। निजी जिन्दगी, नौकरी-पेशा, सामाजिक, धार्मिक या आत्मिक, हर क्षेत्र में कामयाबी के लिए विश्वास का होना जरूरी है। कहते हैं कामयाबी की दो चाबियाँ होती हैं कड़ी मेहनत और विश्वास। विश्वास के बिना मेहनत भी रंग नहीं लाती और इसी विश्वास की चरम अवस्था है अटूट विश्वास । जब इन्सान अपने धर्म, गुरू, इष्ट या ईश्वर पर अटूट विश्वास रखता है तो उस अवस्था को आस्था कहा जाता है। आस्था धर्म, गुरू व ईश्वर पर वह निर्विवाद (unquestionable) भरोसा है जिसे किसी भी सबूत की ज़रूरत नहीं है। कबीर दास जी की ईश्वर में आस्था ही थी कि जब उन्हें बेड़ियों में जकड़ कर गंगा में डूबने के लिए फेंका गया तो वह बेड़ियाँ अपने आप ही टूट गयीं। प्रहलाद की आस्था ही थी कि अग्नि उसका कुछ बिगाड़ न सकी और ईश्वर को खुद खंभे में से प्रकट होकर उसकी रक्षा करनी पड़ी।
दुनिया के हर धर्म, पैगम्बर व ईश्वर का अस्तित्व आस्था पर ही टिका हुआ है। यह वह शक्ति है जो पत्थर को मूर्ति और इमारत को पूजा स्थल बना देती है। यह इन्सान को पत्थर और शब्द में ईश्वर के होने का अहसास दिलाती है व उनके सामने सर झुकाने के लिए व उन पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए प्रेरित करती है। महान वीरों से भरी हुई सभा में अबला द्रोपदी की लाज उसकी अपने सखा भगवान श्री कृष्ण में अथाह आस्था से ही बची। आस्था वह पंछी है जिसके द्वारा रात के तीसरे पहर में ही सुबह होने का अहसास हो जाता है। यह वह रोशनी है जो गहरे से गहरे कोहरे में भी रास्ता दिखाती है। श्रद्धा रूपी जमीन पर जब विश्वास रूपी बीज पनपता है तो वह जन्म देता है आस्था के पौधे को और जब यह पौधा पेड़ का रूप ले लेता है तो जिन्दगी व दुनिया का कोई भी विषय ,परिस्थिति या गम इसे हिला नहीं सकते। सच्चे गुरू और ईश्वर में पूरी आस्था के साथ किया गया कोई भी काम कभी निष्फल नहीं होता। पूरी आस्था के साथ की गयी सेवा निश्चित रूप से रंग लाती है। भाई बिधी चन्द जी की अपने गुरू, छठे पातशाह श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी में अथाह आस्था थी जिसके कारण वह मुगलों के ऊँची ऊँची दीवारों वाले सेना से भरे हुए किले में से अकेले ही दिलबाग और गुलबाग दोनों घोड़ों को छुड़ाकर ले आए। और जब उन्हें मुगल सैनिकों से बचने के लिए एक बार ईंटों के गरम भट्टे में छुपना पड़ा तो गुरू महाराज जी में अथाह आस्था के कारण ही उनका बाल भी बाँका नहीं हुआ। आस्था के साथ किया गया सिमरन भी उत्तम श्रेणी में आता है। छोटी सी उम्र में ईश्वर के प्रति आस्था ही थी जिसने ध्रुव को सिमरन के रास्ते पर चलाकर ईश्वर से मिला दिया और उसे भक्त ध्रुव बना दिया।
आस्था आत्मविश्वास बढ़ाती है और आत्मविश्वास निराशा को खत्म कर देता है। निराशा के खत्म होते ही इन्सान कामयाबी की तरफ तेजी से बढ़ जाता है। अगर आगे रास्ता ना भी दिखाई दे तो आस्था उम्मीद का दिया जलाए रखती है कि कोई न कोई रास्ता ज़रूर होगा, हिम्मत न हारो और कोशिश जारी रखो। जब आँखें बंद दरवाजा देखती हैं तो दिमाग कहता है कि दरवाज़ा तो बंद है अब क्या होगा, लेकिन आस्था कहती है कि आस पास ही दूसरा रास्ता या दरवाजा जरूर होगा, कोशिश तो करो, हो सकता है जो दरवाज़ा बंद दिखायी दे रहा है वो अन्दर से खुला ही हो। दरवाजे को धक्का दो, कोशिश मत छोड़ो। आस्था है तो बंद दरवाज़े में भी रास्ता है। नौशेरा की लड़ाई में जाते हुए महाराजा रणजीत सिंह जी ने अकाल पुरख में अपनी जबरदस्त आस्था को बरकरार रखते हुए, उसका सहारा लेते हुए अपने घोड़े को उफनते हुए अटक दरिया में उतार दिया और उफनता हुआ दरिया शान्त हो गया और उसने महाराजा रणजीत सिंह जी और उनकी सेना को रास्ता दे दिया। रामायण में भी जिक्र आता है कि जब किसी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था तो हनुमान जी ने अपने स्वामी भगवान श्री रामचन्द्र जी में अपनी अथाह आस्था की मदद से ही हर पत्थर पर उनका नाम लिखकर उन्हें सागर में तैरा दिया और लंका तक जाने के लिए सागर पर पुल बना दिया।
आस्था वह भरोसा है जो दिखाई नहीं देता, जिसे छू नहीं सकते, जिसे दिमाग नहीं मानता, लेकिन जिसे महसूस किया जाता है, जिसके परिणाम देखे जा सकते हैं। आस्था गुरू और ईश्वर पर निर्भर (depend) होना है। इन्सान जब भी विश्वास करता है तो वह किसी न किसी पर अपनी निर्भरता दिखाता है। जब आप किसी कुर्सी पर बैठते हैं तो कुर्सी बनाने वाले पर विश्वास करते हैं कि कुर्सी इतनी मजबूत होगी कि आपका वजन उठा सकेगी। किसी बस या रेलगाड़ी में इस विश्वास के साथ सफर करते हैं कि उसका ड्राइवर आराम व सुरक्षित रूप से आपको मंजिल तक पहुँचा देगा। इसी तरह गुरु व ईश्वर पर आस्था का मतलब है कि वह हमसे कहीं अधिक बड़े, शक्तिशाली और महान हैं। वह हमें हमसे कहीं अधिक और ज्यादा अच्छी तरह से जानते हैं और उन्हें मालूम हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा व क्या बुरा है, हमारी क्या ज़रूरतें हैं और क्या इच्छाएँ हैं और कौन सी वस्तु हमें कब देनी है। वह जो भी हमें दें उसे खुश होकर स्वीकार कर लेना ही सच्ची आस्था है। आस्था का रास्ता कई बार बहुत कठिन जान पड़ता है। बहुत बार हम दुनियावी मुश्किलों, परेशानियों व दुःखों से हताश होकर, किसी मनचाही वस्तु या इच्छा की पूर्ति न होने पर अपने गुरू और ईश्वर से नाराज हो जाते हैं व हमारी आस्था डोलने लगती है। लेकिन असल में यही तो इम्तिहान का वक्त होता है। हम यह भूल जाते हैं कि गुरु और ईश्वर सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं और सच्चा गुरू अपने शिष्य का व ईश्वर अपने भक्त का कभी भी बुरा नहीं होने देते।
आस्था का जन्म व उदय इन्सान के मन में होता है जबकि दिमाग तर्क या logic का जन्मदाता है। क्यों, कैसे, कब इत्यादि तर्क और बुद्धि से उपजे चालाकी, चतुराई, सियानप इत्यादि आस्था के दुश्मन हैं। जहाँ पर भी तर्क प्रधान बन जाता है वहाँ आस्था निवास नहीं कर सकती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है बाबा राम राय जी का। औरंगज़ेब के पास जाते हुए उनकी बुद्धि व तर्कशक्ति ने आस्था को पीछे छोड़ते हुए करामातों को प्रधानता दी और नतीजा हुआ कि न केवल वह गुरु गद्दी से बल्कि गुरू घर से भी दूर हो गये।
|
आस्था इन्सान को गुरू व ईश्वर के निकट ले जाने वाला सबसे सरल रास्ता है, आस्था से आत्मविश्वास बढ़ता है और निराशा खत्म होती है; आस्था इन्सान की भावनात्मक (emotional) और बौद्धिक (psychological) स्थिति को स्थिर (balance) रखती है; इन्सान को खुशी और गम में एक समान रहने की शक्ति प्रदान करती है; इन्सान को शान्ति / सुकून व संतुष्टि / तसल्ली प्रदान करती हैं; इन्सान को आनंद और सुरक्षा की भावना प्रदान करती है व चिंताओं से मुक्त करती है; आस्था पूरक (compliment) का कार्य भी करती है, आस्था से की गयी सेवा, सिमरन व अरदास इत्यादि से अतुलनीय और अनोखे परिणाम मिलते हैं; आस्था धार्मिक चेतना और आत्मिक शक्ति बढ़ाती है।
प्यारी साध संगत जी आस्था की सबसे आसान परिभाषा है अटूट और अखंड विश्वास । किसी ऐसी वस्तु पर विश्वास करना जिसे आप देख, छू या सुन नहीं सकते, उस विश्वास को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है। हमारे सिख धर्म में भी अरदास में माँगे गए दानों में एक दान जो माँगा जाता है वो है भरोसा दान यानि कि आस्था का दान। यह वह दान है जो अपने साथ और कई वरदान लेकर आता है। जब किसी मनुष्य को आस्था दान मिल जाता है तो उसके अन्दर किसी भी परिस्थिति का सामना करने की शक्ति आ जाती है।
यही वह ज़बरदस्त शक्ति है जो आपके जीवन में चमत्कार ही चमत्कार ला सकती है। जितनी आस्था बढ़ती जायेगी आप ईश्वर के उतना ही करीब होते जाएँगे और अपने आपको उतना ही enlightened यानि कि ज्ञान और संतुष्टि से भरा पाएँगे। आस्था वह eternal principle यानि कि अनंत नियम या अमर सिद्धान्त है जो सभी धर्मों की नींव है। बाईबल में लिखा है "According to your faith will it be done to you" (Mathew 9:29NIV). ईश्वर इन्सान को अपनी नियामतें व कृपादृष्टि देने के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन वह ऐसा सिर्फ इन्सान की आस्था के मुताबिक ही करता है। भाई लहणा जी की अपने गुरू, श्री गुरु नानक देव जी पर इतनी गहरी आस्था थी कि वह उनके सिर्फ एक बार कहने पर ही जब मुर्दा खाने लगे तो वह कड़ाह प्रशाद में बदल गया और आखिर में गुरूजी के साथ एकाकार होकर उन्हें श्री गुरु अंगद देव जी के रूप में गुरु गद्दी की प्राप्ति हुई। सच्ची आस्था है अपने गुरू महाराज व ईश्वर में, उनके शब्द व आज्ञा में, पूरी वचनबद्धता (commitment) व आत्मसमर्पणता (surrender) के साथ अटूट विश्वास रखना । जैसे एक अन्धा इन्सान बिना कोई सवाल किए अपने को रास्ता दिखाने वाले पर पूरा भरोसा करके उसके हाथों में अपना हाथ देकर, उसके दिखाए रास्ते पर बिना किसी हिचकिचाहट और डर के चलता है, उसी प्रकार आप सब भी गुरु महाराज और ईश्वर पर पूरी आस्था रखकर बिना किसी संदेह के आगे बढ़ें। बाणी भी फरमाती है :
गुर की टेक रहहु दिनु राति ।
जा की कोइ न मेटै दाति ।।
जैसे आप पानी को पकड़ नहीं सकते, लेकिन उस पर विश्वास करके, पानी में उतरकर उसकी सहायता से, उसी में तैरकर दूसरे किनारे तक जा सकते हैं, वैसे ही "आस्था" को महसूस करते हुए अपनी जिन्दगी का अभिन्न अंग बनाऐं व गुरू महाराज और ईश्वर की खुशियाँ प्राप्त करें। ईश्वर आप सभी को सेवा व सिमरन से भरी जिन्दगी प्रदान करें।
|