सामाजिक व्यवहार

हर किसी का अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करना व पढ़ा लिखा और शिक्षित होना।
अपनी कमाई के अनुपात में खर्च करना और संयमित जीवन निर्वाह करना।
सबके सुख दुख में शामिल होना और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना। सबके लिए शुभ की इच्छा करना।
अच्छी संगत में उठना बैठना और मेल जोल रखना।
सामाजिक कुरीतियों जैसे जाति-पाति, किसी भी तरह का वहम (जैसे पोह के महीने में कोई शुभ कार्य न करना), ऊँच नीच, बढ़ चढ़ कर दिखावा, शादी ब्याह इत्यादि में फिज़ूल खर्च, दहेज की लालसा, अंध विश्वास, व्रत एवं कर्म काँडों और कन्या भ्रूण हत्या से बचना एवं सख्त विरोध करना।
अपने पारिवारिक अथवा गुरसंगत के सदस्यों की समस्याओं को परिवार में आपसीय सम्मति से सुलझाना। यदि किसी कारणवश निर्णय न हो पाये तो मामला गुरसंगत के प्रतिनिधियों को सौंपा जायेगा जिनका निर्णय सबको मान्य होगा।
स्त्रियों व लड़कियों को बराबर अधिकार, सम्मान और अवसर प्रदान करना। पुत्र व पुत्री में किसी प्रकार का भेद भाव न रखना।