धार्मिक एवं आत्मिक व्यवहार

नित्य प्रति सेवा, सिमरन और अरदास करना एवं गुरमुखी पढ़ने व लिखने में निपुण होना।
अपने गुरू महाराज जी व गुरूघर में पूरी आस्था, श्रद्धा, भक्ति, विश्वास व सम्पूर्ण आत्मसमर्पण की भावना रखना।
गुरूमहाराज जी की दी हुई सीखों/शिक्षाओं पर न केवल पूर्णतः अमल करना अपितु दूसरों को भी उन पर चलने के लिए प्रेरित और सहायता करना।
गुरूघर के आदर्शों के अनुसार अपनी कथनी और करनी को उत्तम रखना और अपना आचार, व्यवहार व खानपान हमेशा अच्छा रखना।
गुरूघर के लिए तन मन धन से सेवा करना और अपनी कमाई का दसवन्द देना।